बिखरी हुई ज़िन्दगियाँ
मुझे ठीक दिन या तारीख याद नहीं है, लेकिन लगभग 4 साल पहले, एक सुबह करीब 11 बजे का समय था। प्रादेशिक कैंसर केंद्र, तिरुवनंतपुरम में अपनी बारी के लिए कीमोथेरेपी वार्ड के सामने मरीज़ों का एक समूह इंतजार कर रहा था। मैं भी वहां था, किसी ऐसे व्यक्ति के साथ, जिसे मैं जानता था। माहौल मेरे लिए काफी परिचित था, क्योंकि मैं इससे पहले कईं बार वहाँ जा चुका था। विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग और अलग-अलग जगहों से आये हुए लोग, बिना किसी मतभेद के एक दूसरे से अपने जीवन का अनुभव साझा कर रहे थे ;उन सभी ने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा हुआ था। कुछ का मानना था कि यह उनकी किस्मत थी। एक झलक में ही आपको उनके भयभीत चेहरे और आंसुओं भरी आँखे दिख जाती थी।
बिखरे हुए सपने
जैसे-जैसे मैं इधर-उधर देखता रहा, एक दुपट्टा उड़ता हुआ मेरी तरफ आया जैसे किसी ने उसे मेरे पास फेंक दिया हो। मैंने उसे पकड़ा और मुड़ने पर ,लगभग 18 साल की एक लड़की को देखा। सिर से गिरा दुपट्टा के लिए उसने अपना हाथ बढ़ाया। उसका गंजा सिर उस दुपट्टा को थोड़ी सी हवा से भी वापस पकड़ कर रख नहीं सकता था । उसका पीला और मुरझाया हुआ चेहरा देखकर पता चला कि वह एक नौजवान थी जो कैंसर नमक जानलेवा बीमारी का शिकार है!
अनिच्छा से मैंने उसके ठिकाने के बारे में पूछताछ की। पलक्कड़ की रहने वाली वह एक बैचलर ऑफ इंग्लिश छात्रा थी। उसके पास एक बूढ़ी औरत बैठी थी, उनकी आँखों में आँसू भरे थे। उनको देखकर मुझे एहसास हुआ कि यह उसकी माँ थी। मैंने लड़की से उसके बारे में पूछा और मेरा अंदाज़ा सही निकला। उनके सपने बिखरे गए थे। लड़की एक ऐसी ज़िंदगी जी रही थी जो बीच में ही खत्म हो सकती थी। जब मैंने उसकी ओर देखा, तो उसने अपना सिर नीचे कर दिया- वो सूचित कर रही थी कि वह ज्यादा बात नहीं करना चाहती। न जाने क्या कहा जाए, मैंने उसको थोड़ी सांत्वना दिलाने की कोशिश में उससे एक वाक्य बोला, जो नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है : “सब कुछ ठीक हो जाएगा” और सोचा कि मैंने अपनी बातचीत समाप्त कर ली। लेकिन उसने कहा, “हाँ सर,आप अब केवल यह ही कह सकते हैं।”
क्या कोई आशा है ?
वे शब्द आज भी मेरे दिल में दु: ख के साथ गूंजते हैं। मुझे नहीं पता कि वह जीवित है या नहीं। मैं उस दिन अपनी कुर्सी से उठ गया, यह सोचकर कि मुझे उससे बात नहीं करनी चाहिए थी। पर कुछ ख़याल मेरे दिमाग में आ गए। आदमी कितना बेबस है! कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके पास इस दुनिया में क्या है, वह सीमाओं के एक पिंजरे में बंधा है। इस तरह की सीमाएँ इस लड़की के लिए भी एक घातक बीमारी के रूप में एक बिन बुलाये मेहमान के रूप में सामने आई थीं। उसने अपने जीवन में कभी इसकी प्रतीक्षा नहीं की थी। उसे इस दोस्त के साथ जाना पड़ सकता है, एक ऐसा दोस्त जो रंग, जाति या पंथ के आधार पर भेदभाव नहीं करता-मृत्यु ।
हम सभी अपने जीवन में विभिन्न समस्याओं से गुजर रहे होंगे। डॉक्टर हमें विफल कर सकते हैं।
शाश्वत आशा
लेकिन पवित्र बाइबिल में, हमारे सर्वशक्तिमान प्रभु ने कहा है :
“मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।” (इब्रानियों 13:5)
इससे पहले कि हम इसे महसूस करें, एक जानलेवा बीमारी हमारे जीवन को खा रही है। इस बीमारी का दर्द कैंसर से बहुत अधिक है। इसके परिणाम हमें मृत्यु तक ले जा सकते हैं और यह बीमारी चिकित्सा विज्ञान की शब्दावली में नहीं होगा। बाइबल इसे “पाप” बुलाता है।
लेकिन एक चंगा करने वाला है, एक डॉक्टर जो हमें हमारे पापों से चंगा कर सकता है। वह हमारे लिए काम करेगा और हमारे दिल, दिमाग और आत्माओं को छूएगा। महान चिकित्सक! वह कोई और नहीं बल्कि हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता/रक्षक, यीशु मसीह हैं।
मेरे प्यारे दोस्त, अपने पापों से चंगा होने के लिए, आपको बस इतना करना है – अपना दिल खोलकर उसे अपने प्रभु और उद्धारकर्ता/रक्षक बनने के लिए आमंत्रित करें। जब हम असहाय खड़े होते हैं, तो वही एकमात्र होता है जो हमारे लिए सहायक बन सकता है।आइए हम अपना ध्यान बाइबल के एक हिस्से की ओर दें।
यीशु ने यह सुनकर उनसे कहा, “भले चंगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं, परन्तु बीमारों को है : मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ।” (मरकुस 2:17)
आज, मैं वास्तव में अपने दिल से इच्छा करता हूं, कि ऊपर बताई गई लड़की (जिसका नाम मुझे नहीं पता) इस प्रभु और उद्धारकर्ता/ रक्षक यीशु मसीह को जान सकती है।