बाइबल के अनुसार पाप क्या है?
पाप एक ऐसा शब्द है जिसकी अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग परिभाषाएँ होंगी। कुछ लोग खुद को पापी नहीं मानेंगे। कुछ लोग आसानी से स्वीकार कर लेंगे कि वे पापी हैं। लेकिन बाइबल कहती है कि “सभी ने पाप किया है, और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।”( रोमियों 3:23)। यदि सभी पापी हैं, तो बाइबल के अनुसार पाप क्या है? यह निशाने से चूक जाने के बारे में हैं। यानी परमेश्वर के मापदंडों से चूक जाना। हम अक्सर अपनी तुलना दूसरे मनुष्यों से करते हैं । हम सोचते हैं की हम दूसरों की तुलना में अच्छे इंसान हैं ।
लेकिन अगर हम अपनी तुलना परमेश्वर की पवित्रता से करें तो हर एक मनुष्य पापी है । यदि कोई भी उस मापदंड से चूक जाता है तो उन्होंने पाप किया है। इसलिए, पाप के बारे में बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है, ‘सभी ने पाप किया है’, क्योंकि कोई भी यह दावा नहीं कर सकता है कि वे प्रेम, नम्रता या पवित्रता में यीशु के मापदंडों के अनुसार है।
बाइबल में हम विभिन्न पापों की सूची देख सकते हैं और धार्मिक जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन भी देखते हैं । बाइबल में उल्लिखित पापों के कुछ सामान्य उदाहरणों में झूठ बोलना, चोरी करना, व्यभिचार, लालच, मूर्तिपूजा, घृणा और घमण्ड करना शामिल हैं। हालाँकि, पाप की अवधारणा विशिष्ट कार्यों से परे जाती है और मानव हृदय की स्थिति को भी शामिल करती है, जो स्वार्थ, विद्रोह और अविश्वास से ग्रस्त है। प्रभु येशु ने अपने पर्वतीय उपदेश में ऐसा कहा – “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती 5:27-28)
बाइबल बताती है कि पाप के परिणाम गंभीर होते हैं और हम “..अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे।” (इफिसियों 2:1)। । और बुरा समाचार यह है की कोई भी पापी मनुष्य परमेश्वर से संबंध नहीं रख सकता – “क्योंकि धामिर्कता और अधर्म का क्या मेल जोल? या ज्योति और अन्धकार की क्या संगति?”। हालाँकि, शुभ समाचार यह है कि बाइबल केवल यह कहकर समाप्त नहीं होती है कि सभी मनुष्य पापी हैं, बल्कि यह भी बताती है उस पाप से छुटकारा कैसे पाया जाए । येशु मसीह में हम परमेश्वर के मापदंडों को देख सकते हैं। वह प्रेम में सिद्ध है, वह नम्रता में सिद्घ है, वह पवित्र है। उसी सिद्ध यीशु ने प्रत्येक पापी के लिए एक मार्ग बनाया है ताकि प्रत्येक मनुष्य क्रूस पर उसके बलिदान द्वारा परमेश्वर के पास आ सके।
उद्धार क्या है?
परमेश्वर एक न्यायी परमेश्वर है। जब पहले मनुष्य आदम ने अदन के बाग में फल खाकर पाप किया, जिसे परमेश्वर ने उसे खाने से मना किया था, तो पाप मनुष्य में प्रवेश कर गया। पाप का स्वाभाव, सभी मानव जाति को जो आदम से जन्में हैं विरासत में मिला है, जिसमें हममें से हर एक व्यक्ति शामिल है। बाइबल कहती है, ‘पाप की मजदूरी मृत्यु है’ (रोमियों 6:23a)। मृत्यु और कुछ नहीं, बल्कि परमेश्वर से अलग होना और नरक की आग में अनंत काल बिताना है। एक न्यायी परमेश्वर को उसके न्यायपूर्ण स्वभाव के कारण हर मनुष्य को नरक में भेजना था, क्योंकि हम सभी आदम के वंशज होने के नाते पाप में पैदा हुए हैं। परमेश्वर न्यायी है। लेकिन वह एक प्रेम करने वाला परमेश्वर भी है। प्रेमी परमेश्वर चाहता है कि हर पापी को पाप के बंधन से मुक्त हो और उसे अनंत काल का जीवन मिले। यही कारण है कि उपरोक्त वचन के आगे इस प्रकार लिखा है, “पाप की मजदूरी मृत्यु है, लेकिन परमेश्वर का वरदान हमारे यीशु मसीह में अनंत जीवन है” (रोमियों 6:23)। इसलिए, परमेश्वर ने प्रेमपूर्वक अपने एकमात्र निर्दोष और निष्पाप पुत्र को प्रत्येक मनुष्य के पाप के विकल्प के रूप में बलिदान कर दिया। सभी मानवजाति के पाप के लिए, कीमत का भुगतान उनके इकलौते पुत्र के कीमती रक्त द्वारा किया गया। यदि कोई भी यीशु मसीह को परमेश्वर का पुत्र और अपने निजी उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता है, तो परमेश्वर का न्याय उनको उनके पापों के लिए क्षमा करने की अनुमति देता है क्योंकि यीशु के रक्त ने पहले ही इसके लिए कीमत चुका दी है। लेकिन अगर कोई यीशु को अपने निजी उद्धारकर्ता के रूप में ठुकरा देता है, तो उसके पाप क्षमा नहीं होते और परमेश्वर का न्यायी स्वाभाव उनको न्याय से बचा नहीं सकता ।
उद्धार का अर्थ यीशु मसीह को व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना है और परमेश्वर का वरदान प्राप्त करना है, जो उनके पुत्र यीशु मसीह में अनन्त जीवन है। उद्धार पाने वाला व्यक्ति पाप के बंधनों से मुक्त हो जाता हैं । जैसा कि इफिसियों 2 वचन 8-9 कहता है: “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।”
यदि परमेश्वर सभी से प्रेम करता है, तो एक प्रेमी परमेश्वर किसी को नरक में कैसे भेज सकता है? वह मेरे पापों को क्यों माफ नहीं करेगा?
बाइबिल का महत्वपूर्ण वचन युहन्ना 3:16 है, जिसमें कहा गया है, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” क्यों परमेश्वर ने प्रेमपूर्वक, अपने इकलौते पुत्र को इस पृथ्वी पर दुःख सहने , मरने के लिए भेजा, और तीसरे दिन फिर से मानव जाति के पापों के लिए उसे जीवित कीया? क्या वह हमारे पापों को ऐसे ही क्षमा नहीं कर सकता था?
उपर्युक्त कथन सिद्ध करता है कि परमेश्वर एक प्रेम करने वाला परमेश्वर है, लेकिन वह एक न्यायि परमेश्वर भी है। परमेश्वर चाहता है कि हर पापी बचाया जाए और उसके पास अनंत जीवन हो, लेकिन परमेश्वर का न्यायि स्वाभाव किसी भी पापी को बिना दंड के जाने नहीं दे सकता। इसलिए, परमेश्वर ने प्रेमपूर्वक अपने एकमात्र निर्दोष और निष्पाप पुत्र को प्रत्येक मनुष्य के पाप के विकल्प के रूप में बलिदान कर दिया। सभी मानव जाति के पाप की कीमत का भुगतान उनके इकलौते पुत्र के कीमती रक्त द्वारा किया गया। अब विकल्प मानव जाति के पास है कि वे परमेश्वर के पुत्र को अपना निजी उद्धारकर्ता मानें या न मानें। यदि कोई भी यीशु मसीह को परमेश्वर का पुत्र और उनके निजी उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता है, तो परमेश्वर का न्याय उस व्यक्ति को उनके पापों के लिए क्षमा करने की अनुमति देता है क्योंकि यीशु के रक्त ने पहले ही उसके लिए कीमत चुका दी है। लेकिन अगर कोई भी यीशु को अपने निजी उद्धारकर्ता के रूप में अस्वीकार करता है, तो परमेश्वर का न्यायपूर्ण स्वाभाव उन्हें दंड से नहीं बचा सकता । यह दंड नरक है। इसीलिए, परमेश्वर के न्याय में, उन सभी के लिए पापों की क्षमा है, और अनंत काल का जीवन है जो मसीह को अपने निजी उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, लेकिन परमेश्वर के न्याय में उन सभी के लिए जो यीशु मसीह को ठुकरा देते हैं उन्हें नरक कि आग में भेजना शामिल है।
मुझे पापों की क्षमा की आवश्यकता क्यों है क्योंकि मैंने कभी पाप नहीं किया है? मैं एक अच्छा इंसान हूं।
यह मानने में बिल्कुल भी गलत नहीं है कि आप एक अच्छे इंसान हैं। हालांकि, मूल मुद्दा यह है कि सज्जनता/नैतिकता की आपकी परिभाषा बहुत व्यक्तिपरक है जो कि हर दूसरे व्यक्ति में भिन्न होती है। यह समझने के लिए कि पाप क्या है, हमें अपने मानदंडों के बजाय इसे पवित्र परमेश्वर के दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। परमेश्वर की परिभाषा में, पाप हर मनुष्य का एक अनुवांशिक स्वाभाव है जिसका जन्म पृथ्वी के पहले मनुष्य आदम की वजह से हुआ है । बाइबल कहती है: सभी ने पाप किया है (रोमियों 5:12) यह पाप, मानव जाति और परमेश्वर कि उपस्तिथि में एक अनंत अलगाव का कारण है। परमेश्वर की उपस्थिति, और इस संगति को बहाल करने का एकमात्र तरीका पापों की क्षमा है। हम जो कर्म करते हैं, वे हमारे भीतर मौजूद उस स्वाभाव का एक प्रकटीकरण हैं। इसलिए, चाहे हम कितने भी अच्छे काम करें, हम कभी भी परमेश्वर की धार्मिकता के मापदंडों के करीब आने की कल्पना नहीं कर सकते हैं क्योंकि हम आदम के संतानों के रूप में पापी गिने जाते हैं। हमारी अंतरात्मा हमें यह सच्चाई बताएगी।
बाइबल इस तरह से पूछती है: कौन कह सकता है कि मैं ने अपने हृदय को पवित्र किया; अथवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूं? (नीतिवचन: 20:9) हमें निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमारे अनुग्रहकारी और प्रेमी परमेश्वर ने सार्वभौमिक पाप की समस्या का सही समाधान किया है। वह समाधान हमारा प्रभु यीशु मसीह है, वह क्रूस पर मारा गया और अपना कीमती खून बहाया जो न्यायि परमेश्वर की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त से अधिक था।
आपको क्या करना है? आपको बस यीशु मसीह पर विश्वास करने और उसको अपने जीवन के प्रभु के रूप में स्वीकारने की आवश्यकता है, ऐसा करने पर आप बच जाएंगे और आप परमेश्वर के साथ एक अदभुद रिश्ते का आनंद ले पाएंगे।