आनंद पिल्लई की गवाही – Anand Pillai Testimony in Hindi

Anand pillai hindi

श्री आनंद पिल्लई की वीडियो गवाही की प्रतिलिपि…..

 

उनके बिना मेरा जीवन एक आशारहित  अंत हो गया होता। … लेकिन उनके साथ मुझे अनंत आशा है ।

दुनिया में मेरी प्रविष्टि 

मैं यहां आपको मेरी अपनी कहानी बताने आया हूं क्योंकि एक हिंदू होने के बावजूद, मैं इस उद्धारकर्ता को बहुत अलग ढंग से  जानता हूं। कहानी बहुत लंबी है, और मैं विस्तार विवरण में नहीं जाना चाहता, लेकिन कई साल पहले, एक ही दिन में दो घटनाएं घटी थीं। आप इसे अच्छी ख़बर कह सकते हैं, बुरी ख़बर कह सकते हैं या दोनों का मिश्रण कह सकते हैं।

मेरे पिता एक व्यापारी थे, बर्मा शेल केरोसिन (मिट्टी का तेल) वितरणकर्ता थे, और उनका एक बड़ा वितरण था। एक ख़ास दिन, पड़ोस के खेत में (यह शहर के बाहरी इलाके में था) एक व्यक्ति ने कुछ निर्माण करने के लिए एक चट्टान को फोड़ दिया। इस प्रक्रम में वह केरोसिन टैंकों से टकराया और एक बड़ा विस्फोट हुआ और वर्ष १९५९ के  उस दिन 25 हजार रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। अब वह पैसा आज के मूल्य में शायद ही कुछ है। लेकिन उस समय यह बहुत सारा पैसा था और निश्चित रूप से उसे वह हानि उतना पड़ा।    उसे हर्जाना चुकाना भी पड़ा।  लापरवाही के आरोप में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और बाद में रिहा कर दिया गया। जैसे ही वह इस दहकता हुआ समाचार के साथ घर वापस आता है, मेरे रिश्तेदार (और माँ जो घर पर हैं) उसे बधाई देने के लिए आते हैं और कहते हैं कि उनके पास उसके लिए अच्छी खबर है। और अच्छी खबर क्या है? अच्छी खबर यह है – एक बेटा पैदा हुआ है। और ठीक उसी समय मेरे पिता ने अपने नुकसान की कहानी दूसरों को बताई और तुरंत ही वह अच्छी खबर बुरी खबर बन गई।  क्योंकि आप जानते हैं कि कई परंपराएं और अंधविश्वास हैं , जो कहते हैं कि यदि कोई बच्चा पैदा होता है और यदि उसी समय कोई मुसीबतव् या विपत्ति घटित होता है वह बच्चा दुर्भाग्य लेकर आया है। और मेरा  दुनिया में प्रवेश इस प्रकार हुआ है। मेरा नाम वेंकटेश था, जो मेरे परदादा के नाम पर रखा गया था।  क्योंकि मेरा मानना है (मुझे नहीं पता), मेरे नाक, मेरे उस परदादा की नाक सी थी, जिनका नाम वेंकटेश था। लेकिन मेरे पिता ने इसे बदलकर आनंद कर दिया क्योंकि वह चाहते थे कि मुझे आनंद मिले।  और आप जानते हैं कि ‘आनंद ‘ का क्या अर्थ है । और संस्कृत में, आनंद ख़ुशी का चरम रूप है – परम-आनंद का चरम रूप।  ऐसा कुछ भी नहीं है जो इससे निकटतम हो। यह सर्वोच्च रूप है।

तीन घटनाएँ जो मुझे झकझोर कर दिया

लेकिन जैसे दिन आगे बढ़ता गया , मैं अपने पिता के बहुत करीब होता गया। और जैसे जीवन आगे बढ़ी घटनाओं की एक श्रृंखला घटी। मुझे अभी भी याद है जब मैं केवल 9 साल का था, मेरे पिता एक पारिवारिक संगति से वापस  शाम को घर आए, तो जैसे ही उन्हें रात का भोजन परोसा,उन्होंने थाली फेंक दी। सभी ने पुछा, “आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?”

उनके थाली  में चावल थी लेकिन उन्होंने कहा, “नहीं, तुम मुझे कीड़े दे रहे हैं”। क्योंकि उसकी आंखों को वह खाना कीड़े जैसा लग रहा था और हम सब स्तंभित रह गए। हमने कहा, “ यह क्या मुसीबत है? यह चावल है!” उन्होंने कहा, “नहीं, ये कीड़े हैं। खैर, बड़ी मुश्किल से हमने उसे सुलाया। वह पूरी रात परेशान रहा। अगले दिन सुबह, वह डेयरी फार्म में चले गए (जो केरोसीन व्यवसाय के समान लफदायक था जिसने डेयरी व्यवसाय काफी समृद्ध बना)। जब दूध लाया गया, तो वह दूध की बाल्टियों और उसने उसे पलट दिया। हमने उनसे पूछा “क्यों?”; सारा दूध नाली में बह रहा था। उन्होंने कहा, ”गायों ने खून देना शुरू कर दिया है.” हमारे लिए यह चौंकाने वाली बात थी क्योंकि वह सफेद दूध था, लेकिन उसकी आंखों को ऐसा लग रहा था जैसे वह खून है । और वह कई सौ लीटर दूध पलटता चला गया। सभी बाल्टियाँ उलट दी गईं, और निश्चित रूप से परिवार के सभी शिक्षित वर्ग ने कहा कि वह ‘मानसिक रूप से परेशान’ है। परिवार के धार्मिक वर्ग ने कहा कि उस पर ‘दुष्ट आत्मा’ (भूत) चढ़ा हुआ है। हर दिन यह बातचीत चलती रही और इसलिए उसे बेंगलुरु के मानसिक अस्पताल निमहंस में भर्ती कराया गया। वह एक इंजेक्शन और कुछ बहुत भारी दवाओं के साथ वापस आता था और कई  और इलाज होती थीं, जिस पर धार्मिक वर्ग कहता था “नहीं, नहीं, नहीं, यह उसके इलाज का तरीका नहीं है”। और उसे कोड़े मारे गए और पथराव किया गया। जब हमने पूछा, “तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?”, तो उन्होंने कहा, “हम तुम्हारे पिता को पत्थर नहीं मार रहे हैं, हम तुम्हारे पिता को कोड़े नहीं मार रहे हैं। हम उसके अंदर के आत्मा को कोड़े मार रहे हैं।” वह जो दुष्ट आत्मा।  वह वास्तव में पीड़ित था और मैं उस हताशा की प्रभाव समझ सकता था।

मेरे पिता के देखभाल में कठिनाई के कारण, एक दिन मेरे रिश्तेदारों और मेरे चाचाओं ने उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया। और सारी रात वह चिल्लाता रहा, बातचीत करता रहा और किसी से बहस करता रहा। मैं बगल वाले कमरे में था और सोच रहा था, “वह ऐसा क्यों कर रहा है?” हम से सो नहीं सके, हममें से कोई भी नींद नहीं ले सका। वह अकेला था, उसके साथ कोई नहीं था; और हम यह जानते थे।  हमने उसे अकेले कमरे में बंद कर दिया।  लेकिन वह बहस कर रहा था।   एक और आवाज भी सुनाई दे रही थ।  हमने सोचा कि यह कोई पागलपन ह।  सुबह, जब हम उठे और दरवाज़ा खोला, तो हमने देखा कि मेरे पिता फर्श पर सो रहे थे, और जैसे ही उन्हें घुमाया, वहाँ खरोंचो के निशान थे जैसे किसी ने उन्हें अपने नाखूनों से खरोंच दिया हो – तिरछे, एक छोर से दूसरे छोर तक।  अब आप जानते हैं कि मानुषिकता के भाव से  कहें तो, हम उन खरोंचों को स्वयं नहीं ला सकते। वे स्वयं खरोंचें नहीं किया था । जाहिर है, कोई और था पर हम नहीं जानते थे कि वह कौन था। और तब परिवार का आध्यात्मिक पक्ष या धार्मिक पक्ष जीत हुआ और उन्होंने कहा, “निश्चित रूप से वह दुष्ट आत्मा से ग्रस्त है।” लंबी कहानी को संक्षेप में कहें तो, हमें वह घर बेचना पड़ा और हम बेंगलुरु के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में चले गए। कुछ महीनों तक तो परेशानी शांत हो गई लेकिन उसके बाद उसे फिर से परेशान होने लगा। और एक दिन, वह अपने आप में ही उलझा हुआ लग रहा था और बहस कर रहा था। मैं खेलने के लिए बाहर गया था; मेरी मां बाजार गयी थी।  मुझे प्यास लगी थी और मैं घर वापस आया लेकिन दरवाज़ा बंद था। मैंने दरवाजा खटखटाने की कोशिश की और मैंने बलपूर्वक खोला और जैसे ही मैं कमरे में गया, मैंने देखा कि मेरे पिता छत से लटके हुए थे। उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। मैं उस वक्त सिर्फ 10 साल का था।  मुझे समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।  इसलिए जो मचिया (स्टूल) नीचे गिर गया था, मैंने उसे वापस रखा और रसोई में गया, छुरी ली और  खिड़की के सहारे  छत पर जाकर रस्सी काटने की कोशिश की। मैं शरीर को थाम नहीं पाया।  शरीर गिर गया और मैंने रस्सी खोल दी और मैं चिल्लाने लगा। बहुत जल्द सभी पड़ोसी आ गए, और मुझे कुछ-कुछ पता चल गया कि क्या हुआ था, लेकिन मैं वास्तव में मृत्यु की अवधारणा (वास्तविक्ता) को समझ नहीं पाया।

मेरी बहन, मेरी चाची, हर कोई आया और मुझे सांत्वना देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं, चिंता मत करो, तुम्हारे पिताजी वापस आ जायेंगे”। लेकिन पापा कभी वापस नहीं आये।  मेरी बड़ी बहन – हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे – ने कहा, “मैं तुम्हारे लिए हमेशा हूँ”। मेरी मौसी-मेरी माँ की छोटी बहन, जिनके कोई संतान नहीं थी-ने कहा, “मेरी कोई संतान नहीं है। तुम मेरे बेटे हो। मैं तुम्हारे लिए हमेशा हूँ।” मेरे सभी रिश्तेदारों ने कहा, “हम तुम्हरे लिए हर पल हैं”। उसके लगभग तीन साल बाद, मेरी बड़ी बहन की शादी हुई और दहेज का वादा किया गया। हमने वह दे दिया।  और अधिक की आवश्यकता थी। पहली दीपावली  पर जब मेरी मां रिवाज के मुताबिक बेटी को घर बुलाने गई तो बहस हो गई। मेरे जीजाजी ने कहा – “हाँ, वह जाएगी और ‘ इतनी ‘  मात्रा में सोना लेकर वापस आएगी”। और मेरी माँ ने कहा, “हाँ हम दे देंगे, लेकिन इसके लिए कोई शर्त मत रखना”। बहस चलती रही और मेरी माँ मेरी बहन के बिना वापस आ गई। उसके कुछ महीने बाद, संक्रांति या पोंगल के लिए, मेरी माँ फिर से मेरी बहन को बुलाने गयी। और इस बार तो बहस और भी गंभीर थी।  उन्होंने कहा, “ठीक है ! वह जा सकती है, लेकिन अगर वह इतना सोना वापस नहीं लाती तो वह इस घर में कभी खाना नहीं खाएगी।” और भी बहुत सी चीजों की मांग की गई. मेरी मां इस बात से सहमत नहीं हुईं और वह वापस चली गईं।’ और जब वह वापस आई और रो रही थी। मेरी माँ को रोता और दुखी देखकर मेरी बहन ने कहा कि, “उसकी उदासी का कारण मैं हूँ।” वह रसोईघर में गई, जहर पी लिया और आत्महत्या कर ली। और मुझे समझ ही नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ। उसके ठीक 2 साल बाद, मेरी मौसी, मेरी मां की छोटी बहन, जो उस समय तक 10 साल से बांझ थी, सब का शाप पात्र थी । दरअसल यह एक चिकित्सा सम्बादित सम्स्या थी।   उसे गर्भाशय का कैंसर था और उसे ऑपरेशन करके उसे निकालना पड़ा लेकिन सभी ने कहा, “तुम्हें भगवान का श्राप है और इसीलिए तुम्हारी कोख बंद है”। मेरी चाची ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।   परंतु  मेरे चाचा को जब यह पता चला कि उसकी गर्भाशय निकाल दिया गया है तो उसने ने कहा, “मेरे लिए संतान उत्पन्न होना असंभव है, मैं दूसरी महिला से शादी करने जा रहा हूं”, जिस पर मेरी चाची सहर्ष सहमत हो गईं। लेकिन जो लोग रिश्ता लेकर आये थे, उन्होंने कहा, “अपनी पत्नी को विदा कर दो, क्योंकि जब तक वह रहेगी, हमारी बेटी चैन से नहीं रहेगी।” जिस पर मेरी चाची सहमत नहीं थीं. उन्होंने कहा, ”मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, मुझे क्यों जाना चाहिए? अगर तुम शादी करोगी और तुम्हारे बच्चे होंगे तो मैं उस बच्चे की ऐसे देखभाल करूंगी जैसे कि वह मेरा अपना बच्चा हो। अगर जरूरत पड़ी तो मैं घर की नौकरानी बन जाऊंगी, लेकिन मुझे मत भेजना।” लेकिन फिर भी, बहस जारी रही। और उसके कुछ हफ्ते बाद खबर आई कि जिस लड़की का वादा मेरे चाचा के लिए किया गया था, उसकी सगाई किसी और के साथ हो चुकी है। उससे हताशा में मेरे चाचा ने कहा, “तुम तो जीते नहीं हो, और दूसरों को भी जीने नहीं देते।” मेरी चाची बहुत निराश हो गईं और रसोईघर में गईं और मिट्टी का तेल डालकर खुद को आग लगा ली। जब ऐसा हुआ, तो मैं खुद से सवाल कर रहा था, “क्या मौत का कोई जवाब है? मृत्यु क्यों हो रही है? दुःख क्यों हो रहा है?” मैंने हर उस भगवान की पूजा की जिसके बारे में मैं सोच सकता था, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था।  1978 अगस्त में, मेरी बहन, छोटी बहन, जो उस समय केवल साढ़े 16 साल की थी, हड्डी के कैंसर का पता चला। हम उसे किदवई मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट ले गए और डॉक्टर ने कहा, “वह 5 महीने से ज्यादा जीवित नहीं रहेगी। 4-5 महीने. इतना ही”। और जब हम उसे अस्पताल से वापस ला रहे थे, मैंने कहा, “मैं एक और मौत देखने के लिए घर में नहीं रहूँगा। मैं भागने वाला हूँ।” और मैं घर से चला गया, इस बहाने से , “की, मैं घर पर रहकर पढ़ाई कर नहीं पाता हूँ। मेरे पास शांति नहीं है, इसलिए मैं जाऊंगा”। मेरी माँ का पूरा ध्यान मेरी बहन पर केंद्रित था क्योंकि वह उसकी देखभाल कर रही थी। उसने मुझे समझाने की कोशिश की लेकिन फिर भी मैं दृढ़ रहा और मैं भाग गया। मैं अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला नहीं ले सका क्योंकि मुझे नहीं पता था कि अगर मैं मरूंगा तो स्वर्ग जाऊंगा या नरक जाऊंगा। मेरे पास इसका उत्तर ही नहीं था।  वैसे, कुछ महीने बीत गए और दिसंबर के महीने में, मैं अपनी एक किताब लेने के लिए घर वापस आना चाहता था जो छूट गया था। और जब मैं घर आया, तो मैंने देखा की वहाँ बहुत सारे रिश्तेदार इक्कट्ठा थे – और मेरी बहन की 3 दिन पहले मृत्यु हो गई थी। मेरे सभी रिश्तेदार मुझे कोस रहे थे, वे चिल्ला रहे थे, वे मुझे उल्टे नाम से पुकार रहे थे; “तुम कैसे बेटे हो? तुम कैसा भाई हैं?” वे उन संघर्षों को जिनसे मैं स्वयं गुज़र रहा था नहीं समझते थे । फिर मैंने अपने आप से कहा, “ मैं ज्यादा दिन तक इंतजार नहीं करूंगा। तीसरे महीने के बाद, (क्योंकि पांचवें दिन के बाद एक धार्मिक अनुष्ठान होता है) मैं इंतजार नहीं करने वाला हूं। तीसरे महीने के बाद मैं अपना जीवन समाप्त कर लूँगा।”

खुदकुशी का प्रयास 

मैं आपको अपनी कहानी बताने के लिए जी रहा हूं। और, तीसरे महीने में, 14 मार्च को, मुझे अभी भी याद है, मैंने फैसला किया कि मैं अपने पिता की तरह ही अपना जीवन समाप्त करने जा रहा हूँ। लेकिन जैसे ही मैंने रस्सी बांधी और अपनी गर्दन को फंदे में डालने वाला था, मैंने देखा कि अलमारी खुली थी और उसमें एक नया नियम (पवित्र बाइबिल का एक भाग) था। यह मुझे तब दिया गया था जब मैं विद्यालय में था – मुझे नहीं पता था कि लोग इसे विद्यालय में क्यों दिया । यह मुझे गिडियन्स नामक संगठन द्वारा दिया गया था जो नया नियम (पवित्र बाइबिल का एक भाग) वितरित करता है। मैंने इसे लेकर आने का और मेरे कमरे में रखने का एकमात्र कारण यह था कि इसमें सोने की परत लगी थी और मैंने कहा, ” दिखने में अच्छा है, मुझे इसे रखने दो”। उस दिन, मैंने कुछ ही मिनटों में फैसला किया की मैं मरने जा रहा हूं। अगर मैं उसे पढ़े बिना मर जाऊं, तो शायद मैं इससे वंचित रह जाऊंगा। अब मैंने यीशु की कहानी सुना है और मेरे मन में यीशु के लिए बहुत सम्मान और प्यार था, लेकिन वह मेरे लिए सिर्फ देवताओं में से एक था। मैंने कहा, “ठीक है”, लेकिन यहां मैं अपना जीवन समाप्त करने जा रहा हूं और सोचा, “मैं इसे पढ़ने जा रहा हूं, जल्द से ‘प्रस्तावना’ पृष्ठ में जाने के लिए सोचा और उस  विशिष्ट पृष्ठ संख्या पर जाएं जहां यीशु की कहानी है ।  मैं उस कहानी को पढ़कर अपना जीवन समाप्त कर सकता हूं।” तो, मैं गया, पहले कुछ पन्ने देखे और पाया की उस गिदोन्स नया नियम में कोई ‘प्रस्तावना’ पृष्ठ नहीं था। मैं निराश हो गया. ये किस तरह के लोग हैं?  वे बिना किसी ‘प्रस्तावना’  के एक किताब लिख रहे हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दो अन्य पृष्ठ थे।  एक पृष्ठ वह था जहां, आप जब दुखी हों, या फिर आपको आनंद की ज़रूरत हो इत्यादि में मदद मिल सके। मैंने कहा, “मुझे ‘डिब्बाबंद’ उत्तर नहीं चाहिए। मुझे और अधिक खोजने दो”। मैं अगले पृष्ठ पर गया और वह पृष्ठ एक और खंड यह बताती है की  मसीही सदगूण,आनंद, शांति इत्यादि के बारे में बाइबिल क्या सिखाती है । और उस समय, मैं शांति चाहता था। इसलिए मैं ‘शांति’ शीर्षक पर उस अनुभाग में गया और उस पृष्ठ मैं कुछ पद लिखा हुआ पाया – यूहन्ना  14:२७ । मुझे नहीं पता था कि मैं उस वचन को कैसे देखूं, लेकिन चूंकि पृष्ठ संख्या दी गई थी, इसलिए मैं उस पृष्ठ संख्या पर गया और उस पद को पढ़ा और वह इस प्रकार था- “मैं शांति तुम्हारे साथ छोड़ता हूं, मेरी शांति मैं तुम्हें देता हूं। मैं वैसा नहीं देता जैसा संसार देता है। अपने मन को व्याकुल न होने दो, और न घबराओ।” यह एक बहुत ही साहसिक और आधिकारिक बयान था।  और जब मैं यह देखने के लिए इधर-उधर खोजा  कि यह व्यक्ति कौन है जो यह कह रहा है, तो मुझे पता चला कि यह प्रभु यीशु मसीह थे जो यह कह रहे थे और मैंने कहा, “वाह! वह अपनी शांति दे रहा है और वह उसका तुलना भी कर रहा है।” – ”मैं वह शांति नहीं देता जैसी दुनिया देती है।” मैंने कहा, “ओह, मुझे और जानने की ज़रूरत है”। और तभी मेरी नजर यूहन्ना १०वां अध्याय और पद 10 पर पड़ी और मैंने उसे पढ़ा कि “चोर मारने और नाश करने आया है, परन्तु मैं इसलिए आया हूं कि तुम जीवन और जीवन को उसकी संपूर्णता में पाओ”। मैं जीवित था – और वह जीवित लोगों से बात कर रहा था। लेकिन मैं केवल मसीह के बिना अस्तित्व में था। मैंने कहा, “यह वह व्यक्ति है जो मुझे जीवन देने के लिये आया है।” और मैं एक अन्य पद, एक अन्य पुस्तक, रोमियों अध्याय 5 पद 8 पर गया। और जब मैंने उसे पढ़ा- वह मेरे लिए निर्णायक मोड़ था ! क्योंकि वह पद कहता है, “परन्तु परमेश्वर हमारे प्रति अपना प्रेम इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे, तभी मसीह यीशु हमारे लिये मर गया”। मैंने सोचा, “वाह! यदि कोई ईश्वर है, तो मैं इस ईश्वर पर विश्वास करना चाहूंगा, जिन्होंने मेरे अपने आप शुद्ध होने का इंतजार नहीं किया, या फिर मेरे द्वारा कुछ भी अच्छा, कुछ भी पवित्र करने का इंतजार नहीं किया। जबकि मैं पापी ही था उसने अपने पुत्र येशु  मसीह को मेरे लिए मरने के लिए भेजा। तो मैंने कहा, “मैं इस परमेश्वर पर विश्वास करना चाहता हूँ”। मैं किताब के अंत तक गया, वहां कुछ प्रार्थना लिखी थी लेकिन मैंने एक साधारण प्रार्थना की। और वह प्रार्थना थी “प्रिय प्रभु , आप एक ईसाई ईश्वर हैं। और मैं एक हिंदू हूं और मैं आपके बारे में और अधिक जानना चाहता हूं।” किसी तरह, मुझे कुछ अजीब सा एहसास हुआ कि मैंने उस तरह से प्रार्थना नहीं की जिस तरह से प्रार्थना की जानी चाहिए। इसलिए, मैं वापस गया और उस पूरी प्रार्थना को दोबारा किया जिसमें बहुत सारी ‘आप’ और ‘आपके’ भी शामिल थी क्योंकि मैंने अपने स्कूल में ‘आप’ और ‘आपके’ के साथ बहुत प्रार्थनाएं सुना है । और मैंने सुनिश्चित किया कि मैं “आमीन” के साथ समाप्त करूं। दिलचस्प बात यह है कि मुझे लगा कि परेश्वर ने मेरी पहली प्रार्थना सुन ली।

परमेश्वर मेरी पहली प्रार्थना सुन ली 

उस शाम, मैंने जल्दी से रस्सी खोली और उसे दूर फेंक दिया। मुझे अपने एक अन्य मित्र से मिलने जाना था; हम दोनों संयुक्त अध्ययन कर रहे थे। और जैसे ही हमने अपना संयुक्त अध्ययन करना शुरू किया, उन्होंने कहा, “मैंने अपना काम समाप्त किया, क्या तुम पूरा हुआ ?” मैंने कहा, (मैंने अपने हिस्से का काम नहीं किया था, मुझे बिजली और चुंबकत्व का अध्ययन करना था और उसे स्थैतिकी और गतिशीलता का अध्ययन करना था) “नहीं, मुझे भरपूर जीवन मिला है”। उसने मुझे लात मारी और कहा, “आनंद, तुम धोखा देते हो! मैंने अपना काम कर दिया और अब हम क्या करने जा रहे हैं?” और जब हम बात कर रहे थे, उन्होंने कहा, “एक मिनट रुकें। तुमने कहा भरपूर जीवन।  यह तुम्हे कहां से मिला?”। मैंने कहा, “मैंने एक अच्छी किताब पढ़ी है।” तब उसने तुरंत मुझसे पूछा, “क्या तुम  यीशु के बारे में और जानना चाहते हैं?” मैंने कहा, “एक मिनट रुकें, मैंने बिल्कुल यही प्रार्थना की थी। आप कैसे जानते हो?”। उन्होंने कहा, ”मुझे नहीं पता कि तुमने प्रार्थना किया था ।  मैं तो बस  बस एक प्रश्न पुछा “। मैंने कहा, “हां, मैं जरूर जानना चाहता हूं।” और उसने कहा, “ठीक है, मेरा एक दोस्त है। वह एक वैज्ञानिक हैं।   उसे इलेक्ट्रॉनिक्स में डबल पीएच.डी. हैं। वह आकर बताएंगे”। मैंने कहा, “एक व्यक्ति जो इलेक्ट्रॉनिक्स में पीएच.डी. है वह मुझे यीशु के बारे में कैसे बता पायेगा ?”। “नहीं, नहीं, नहीं, यह व्यक्ति एक अतिथि प्राध्यापक (विजिटिंग प्रोफेसर) है। वह आकर तुम्हे बताएगा”।

डॉ. ग्राहम फ्रेंच आए और मैंने पूछा, “आप उपदेश देकर और उंगली दिखाकर मुझे कुछ नहीं बताएंगे?” उन्होंने कहा, “नहीं, नहीं, मैं सिर्फ अपने जीवन के बारे में बँटना (बताना) चाहता हूं”। और वह इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रति अपने चाह के बारे में बात करने लगे – जो मेरा विषय भी था। और मुझे उसकी बातचीत बहुत अच्छी लगी।   लेकिन फिर उन्होंने एक बयान दिया जिसने मुझे चौंका दिया और वह बयान यह था –  उन्होंने कहा, “21 साल की उम्र में मुझे एहसास हुआ कि मैं एक पापी हूं। मैंने ईसा मसीह को अपने जीवन में स्वीकार किया और मसीही बन गया।” मैंने कहा, “एक मिनट रुकें डॉ. ग्राहम, क्या आप वैज्ञानिक नहीं हैं? क्या आप एक प्रतिभाशाली लड़का नहीं थे ? आपको  कैसे एहसास हो सकता है कि आप एक पापी है ?” उन्होंने कहा, “सुनो, तुम जो कह रहे हो वह सही ह।  एक अर्थ में, तुम जानते हो , की मेरे दोस्तों की नज़र में, मैं एक मेधावी छात्र था। अपने माता-पिता की नज़र में मैं एक आज्ञाकारी लड़का था। मेरे शिक्षकों  की नज़र में मैं होशियार या प्रतिभाशाली था। लेकिन ईश्वर की नजरों में, जिनके मानक (स्तर) कहीं ऊंचे हैं- उसकी तुलना में- मैं उनकी महिमा से चूक  गया हो गया हूं। इसके विपरीत, सापेक्ष दृष्टि से, मैं एक पापी हूँ। और मेरे इरादे (मन के विचार) सबसे गिरी हुई हैं।” मैंने कहा, “ठीक है, मैं इसे स्वीकार करता हूँ। लेकिन आप कैसे आगे बढ़े और आप मसीही कैसे बने? क्या आप जन्म से ईसाई नहीं थे?” वह बोला, नहीं”। और तभी उन्होंने यह पद (वचन) का जिक्र किया जो जॉन अध्याय 1 पद 12-13 में है – ”जब आप किसी परिवार में पैदा होते हैं तो आप उसके (परमेश्वर) बच्चे नहीं बनते। जब आप उसे अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं तो आप उसकी संतान हैं। और मैंने कहा, “यह कैसे हुआ?” और उसने कहा, “मैंने प्रार्थना की”। और फिर मैंने उससे पूछा “उसके बाद क्या हुआ?” उन्होंने कहा, “मैं एक नया व्यक्ति बन गया”। और मैंने कहा, “आप एक नए व्यक्ति कैसे बने?” और फिर उसने बाइबल की एक और आयत से परिचित करवाया –  इस व्यक्ति को मेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर बाइबल की आयतों से देने की एक अज़ीब अंदाज था।  उसने मुझे- 2 कुरिन्थियों अध्याय 5 पद 17 पढ़कर सुनाया । उसने कहा, “इसलिए यदि कोई मसीह में है तो वह एक नई सृष्टि  है। पुराना तो बीत गया, देखो नया आ गया है।”

मैंने कहा “वाह! मैं एक नया इंसान बनना चाहता हूं. मुझे क्या करना होगा ?” उन्होंने कहा, “मेरे बाद प्रार्थना करो”। इसलिए, मैंने उसके बाद प्रार्थना किया, और जैसे ही मैंने उसके बाद प्रार्थना किया, मुझे एक नई सृष्टि बनने की उम्मीद था । मैंने कहा “नहीं, मैं कोई नया  सृष्टि नहीं बना  हूं। आप मुझे धोखा दिया ।  आपने अभी कहा कि अगर मैं स्वीकार कर लूँ तो मैं एक नया  सृष्टि  बन जाऊँगा।” उन्होंने कहा, “नहीं, एक नया व्यक्ति बनने की प्रक्रिया शुरू हो गया  है”।

और फिर उन्होंने बताया कि कैसे (उस समय वह 45 वर्ष के थे) 24 साल से भी पहले, जब उन्होंने इसे(मसीह को ) स्वीकार किया, तब से  बदलाव शुरू हुआ और कहा कि यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। मैंने कहा “अब आप मुझे धोखा दे रहे हो।” आपने कहा था ‘आप एक नया  सृष्टि  बनेंगे’। मैंने पुछा, “यह प्रक्रिया कैसी हो गई है।” और फिर उन्होंने बाइबिल के एक पद, 2 कुरिन्थियों अध्याय 3 पद  18 का उल्लेख करते हुए उत्तर दिया, जिसमें कहा गया है, “परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं॥”  अब जितना मैं तुरंत एक नया व्यक्ति बनना चाहता था, मैंने नया बनने की इस प्रक्रिया को स्वीकार कर लिया। मसीह में अनंत आशा

अब मैं आगे बढ़ सकता हूं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि मैंने यह फैसला 14 मार्च 1979 को शाम 4.30 बजे लिया था।   उसके बाद मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की।  मैं भारतीय विज्ञान संस्थान से कंप्यूटर विज्ञान पूरा किया और  प्रबंधन प्रशिक्षण के लिए डीसीएम में चयनित हो गया।

उसके बाद  टाटा में शामिल हुए, जहाँ मैं 10 साल तक काम किया, 2 अमेरिकी कंपनियों में गए, मौजूदा कार्यभार (नौकरी) से पहले 14 साल तक एच सी एल टेक्नोलॉजीज में सेवा की । मुझे निःशेष आनंद की सवारी था । मैं कहता हूं, ‘आनंद की सवारी’, इसलिए नहीं कि सब कुछ  आसान थीं। हालात कठिन थे।  लेकिन कठिनाइयों के बीच, मेरे पास ताकत थी, मेरे पास शक्ति थी। जो मेरे साथ काम कर रहा है, उसके कारण मुझमें वह जीवन जीने की क्षमता  मुझे मिली । क्योंकि प्रभु यीशु ने यूहन्ना 16 पद 33 में कहा है, “इस संसार में तुम्हें क्लेश होगा, परन्तु ढाढ़स बांधो क्योंकि मैं ने उन पर जय पाई है।” और मेरा जीवन बहुत प्रतिस्पर्धी रहा है। जिस दुनिया में हम रह रहे हैं वह आसान नहीं है। आपका मूल्यांकन उस तरह नहीं होता जैसा आप चाहते हैं। आपका ग्राहक आपको CSAT स्कोर उस तरह नहीं देगा जैसा आप चाहते हैं। आपने सब कुछ कर लिया होगा।   उन कठिनाइयों के बीच, आपके जीवन का एक उद्देश्य है। और मेरे साथ भी यही हुआ।  अपने जीवन के 33 वर्षों में, मैंने इसी एक चीज़ को जारी रखा है। अंत में, मैं बस आपको बताना चाहता था- मेरा जीवन, जैसा कि आपने देखा होगा, शुरुआत में यीशु मसीह के बिना एक निराशा में अंत हो जाता। लेकिन मसीह के साथ, मुझे अनंत आशा है। मेरे सांसारिक पिता चाहते थे कि मुझे आनंद मिले और इसलिए, उन्होंने मेरा नाम वेंकटेश से बदलकर आनंद रख दिया। मेरे सांसारिक पिता का क्या इरादा था; मेरे स्वर्गीय पिता ने पूरा किया है। अब सिर्फ मेरा नाम आनंद नहीं है. मैं खुद आनंद हूं।   अब आप मुझे गूगल कर सकते हैं और मेरी सभी व्यावसायिक उपलब्धियाँ देख सकते हैं। अब मेरे जीने के उद्देश्य की तुलना में बाकि सब त्रुटि को पूर्णांकित करना जैसा है । और यही मैं आपको बताना चाहता हूं।   नाना प्रकार के परम्पराएं  हो सकते हैं -जो कहेंगे  की  यीशु मसीह इस तरह आए, वह उस तरह आए। इस सबका कोई मतलब नहीं है।  वह इस दिन आया, वह दूसरे दिन आया। वह इस महीने आया, वह किसी और महीने आया। हालाँकि, जहाँ तक मेरा सवाल है, मसीह मेरे जीवन में आया। मेरे लिए क्रिसमस 14 मार्च 1979 को शुरू हुआ। जब आप उस वास्तविकता को स्वीकार करते हो तो क्रिसमस आपके लिए शुरू हो सकता है। मैं अपने जीवन में मसीह को कैसे अनुभव किया, यह साझा करने का अवसर जो मुझे मिला, इसके के लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं अपने पेशे  में बना रहूँगा । मैं कॉरपोरेट जगत में बना हुआ हूं लेकिन एक अंतर के साथ। अब मुझे पता है कि मैं यहाँ क्यों हूँ। और यही महत्वपूर्ण बात है।  धन्यवाद।